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Horrendously Wrong 134 Former Bureaucrats Write To CJI In Bilkis Bano Case – बेहद गलत फैसला, 134 पूर्व नौकरशाहों ने CJI को पत्र लिखकर बिलकिस बानो मामले में कहा

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'बेहद गलत फैसला', 134 पूर्व नौकरशाहों ने CJI को पत्र लिखकर बिलकिस बानो मामले में कहा

नई दिल्ली:

बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के खिलाफ 130 से अधिक पूर्व नौकरशाहों ने शनिवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को एक खुला पत्र लिखा और उनसे इस ‘‘बेहद गलत फैसले” को सुधारने का अनुरोध किया. उन्होंने प्रधान न्यायाधीश से गुजरात सरकार द्वारा पारित इस आदेश को रद्द करने और सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के दोषी 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजे जाने का आग्रह किया.

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पत्र में कहा गया है, ‘‘भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर कुछ दिन पहले गुजरात में जो हुआ उससे हमारे देश के ज्यादातर लोगों की तरह, हम भी स्तब्ध हैं.” ‘कंस्टीटयूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वावधान में लिखे गए पत्र में जिन 134 लोगों के हस्ताक्षर हैं उनमें दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व कैबिनेट सचिव के. एम. चंद्रशेखर, पूर्व विदेश सचिवों शिवशंकर मेनन और सुजाता सिंह और पूर्व गृह सचिव जी. के. पिल्लई शामिल हैं.

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने शनिवार को भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. उच्चतम न्यायालय ने बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली एक याचिका पर 25 अगस्त को केंद्र तथा गुजरात सरकार को नोटिस जारी किये थे.

पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि दोषियों की रिहाई से ‘‘देश में नाराजगी है.” पत्र में कहा गया है, ‘‘हमने आपको पत्र इसलिए लिखा है क्योंकि हम गुजरात सरकार के इस फैसले से बहुत व्यथित हैं और हम मानते हैं कि केवल उच्चतम न्यायालय के पास वह अधिकार क्षेत्र है, जिसके जरिये वह इस बेहद गलत निर्णय को सुधार सकता है.” गौरतलब है कि गोधरा में 2002 में ट्रेन में आगजनी के बाद गुजरात में भड़की हिंसा के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक बलात्कार किया गया था. उस समय उसकी आयु 21 वर्ष थी और वह पांच महीने की गर्भवती थी. इस दौरान जिन लोगों की हत्या की गई थी, उनमें उसकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत ने जनवरी 2008 में सभी 11 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में इस फैसले को बंबई उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था.

पत्र में कहा गया है कि 15 साल जेल की सजा काटने के बाद, एक आरोपी राधेश्याम शाह ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. इसमें कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय ने राधेश्याम शाह की याचिका पर यह भी निर्देश दिया था कि गुजरात सरकार द्वारा समय से पहले रिहाई के आवेदन पर नौ जुलाई, 1992 की माफी नीति के तहत दो महीने के भीतर विचार किया जाए.

पत्र में कहा गया है, ‘‘हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को इतना जरूरी क्यों समझा कि दो महीने के भीतर फैसला लेना पड़ा. साथ ही उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि मामले की जांच गुजरात की 1992 की माफी नीति के अनुसार की जानी चाहिए, न कि इसकी वर्तमान नीति के अनुसार.” इसमें कहा गया है, ‘‘हम आपसे गुजरात सरकार द्वारा पारित आदेश को रद्द करने और सामूहिक बलात्कार तथा हत्या के दोषी 11 लोगों को उम्रकैद की सजा काटने के लिए वापस जेल भेजने का आग्रह करते हैं.”

 

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Mohd Aman

Editor in Chief Approved by Indian Government

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